Sunday, 28 September 2014
पुर्जा
सामान की आखिरी खेप जा चुकी थी। किराएदार, क्रेपबैंड हैट वाला जवान आदमी, खाली कमरों में अंतिम बार पक्का करने के लिए घूमता है कि कहीं पीछे कुछ छूट तो नहीं गया। कुछ नहीं भूला, कुछ भी नहीं। वह बाहर सामने हॉल में गया। पक्का निश्चय करते हुए कि इन कमरों में जो कुछ भी उसके साथ हुआ वह उसे कभी याद नहीं करेगा। और अचानक उसकी नजर कागज के अधपन्ने पर पड़ी। जो पता नहीं कैसे दीवाल और टेलीफ़ोन के बीच फ़ँसा रह गया था। कागज पर लिखावट थी। जाहिर है एक से ज्यादा लोगों की। कुछ एंट्रीज पेन और स्याही से बड़ी स्पष्ट थी, जबकि बाकी दूसरी लेड पेंसिल से घसीटी हुई। यहाँ-वहाँ लाल पेंसिल भी प्रयोग हुई थी। दो साल में उसके साथ इस घर में जो कुछ भी हुआ था, यह उन सबका रिकॉर्ड था। सारी चीजें, जिसे भूल जाने का उसने मन बनाया था, लिखी हुई थीं। कागज के एक पुर्जे पर यह एक मनुष्य के जीवन का एक कतरा था।
उसने उस पेपर को निकाला; यह स्क्रिबलिंग पेपर का एक टुकड़ा था। पीला और सूरज की तरह चमकता हुआ। उसने उसे ड्राइंगरूओम के कार्निश पर रख दिया और उस पर आँखें गड़ा दीं। लिस्ट के शीर्ष पर एक औरत का नाम था: ‘एलिस’। संसार में सबसे सुंदर नाम, जैसा उसे तब लगा था। क्योंकि यह उसकी मंगेतर का नाम था। नाम के बाद एक नंबर था: ‘१५,११’। लगता है यह बाइबिल के एक स्त्रोत का नंबर था, स्त्रोत बोर्ड पर। उसके नीचे लिखा था, ‘बैंक’। जहाँ उसका काम था, उसका पवित्र काम – जिसके द्वारा ही उसका मकान, उसकी रोटी और पत्नी, सब – उसके जीवन का आधार। परंतु शब्द पेन से कटा था। क्योंकि बैंक फ़ेल हो गया था। हालाँकि उसने बाद में दूसरा काम पा लिया था। परंतु दुश्चिंता और बेचैनी के एक छोटे से अंतराल के बाद।
अगली एंट्रीज थी: ‘फ़ूलों की दुकान और घोड़ों आदि का खर्च।’ ये उसकी सगाई से संबंधित थे। जब उसकी जेबों में भरपूर पैसे थे।
तब आया ‘फ़र्नीचर डीलर और पेपर हैंगर।’ – उसका घर सजाया जा रहा था। ‘फ़ॉरवर्डिंग एजेंट’ – वे प्रवेश कर रहे थे। ‘ऑपेरा-हाउस का बॉक्स-ऑफ़िस, नंबर ५०-५०’ – उनकी नई-नई शादी हुई थी। इतवार की शामों को वे ऑपेरा जाते। उनके जीवन के खूब खुशी के दिन। जब वे शाँत चुपचाप बैठते। उनकी आत्मा परी देश के सौंदर्य और लय में परदे के पीछे मिलती।
उसके पश्चात एक आदमी का नाम था, काटा हुआ। वह एक दोस्त हुआ करता था। उसकी जवानी का। एक आदमी जो सामाजिक तराजू पर बहुत ऊँचा चढ़ा, लेकिन गिरा। सफ़लता के मद में, सफ़लता से बिगड़ कर, गहन गर्त में। और फ़िर उसे देश छोड़ना पड़ा।
सौभाग्य इतना अस्थिर था!
अब, पति-पत्नी के जीवन में कुछ नया आया। अगली प्रविष्टि एक स्त्री की लिखावट में थी: ‘नर्स।’ कौन सी नर्स? हाँ वही बड़े लबादे और सहानुभूतिपूर्ण चेहरे वाली। जो कभी ड्राइंगरूम से होकर नहीं जाती बल्कि दालान से सीधे बेडरूम में जाती।
उसके नीचे लिखा था, ‘डॉ. एल’
और अब, लिस्ट पर पहली बार कोई रिश्तेदार आया: ‘ममा।’ यह उसकी सास थी। जो उनकी नई नवेली खुशी को भंग ना करने के लिए अब तक जानबूझ कर दूर थी। लेकिन अब उसकी जरूरत थी। वह आकर खुश थी।
बहुत सारी प्रविष्टियाँ लाल और नीली पेंसिल से थीं: ‘नौकर रजिस्ट्री ऑफ़िस’ – नौकरानी छोड़ गई थी और एक नई को लगाना है। ‘केमिस्ट’ – हा! जीवन में कालिमा आ गई थी। ‘डेयरी मिल्क का ऑर्डर दिया गया – स्टेरेलाइज्ड दूध!
‘कस्साई, किराना, आदि।’ घर के काम टेलीफ़ोन से हो रहे थे; मतलब मालकिन अपनी पोस्ट पर नहीं थी। नहीं, वह नहीं थी। वह लेटी हुई थी।
आगे क्या लिखा था वह पढ़ नहीं पाया। क्योंकि उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया; वह नमकीन पानी में से देखता हुआ एक डूबता हुआ आदमी था। फ़िर भी, वहाँ लिखा था, बहुत साफ़: ‘अंडरटेकर – एक बड़ा ताबूत और एक छोटा ताबूत।’ और ‘धूल’ शब्द पद कोष्ठक में जुड़ा हुआ था।
पूरे रेकॉर्ड का यह अंतिम शब्द था ‘धूल’। धूल के साथ वह समाप्त हुआ! और ठीक-ठीक यही होता है जिंदगी में।
उसने पीला कागज लिया, उसे चूमा। कायदे से तहाया और अपनी पॉकेट में रख लिया।
दो मिनट में वह अपनी जिंदगी के दो वर्ष फ़िर से जी गया।
परंतु जब उसने घर छोड़ा वह हारा हुआ नहीं था। इसके विपरीत, एक प्रसन्न और गर्वित आदमी की तरह वह अपना सिर ऊँचा किए हुए था। क्योंकि वह जानता था कि जीवन की सर्वोत्तम चीजें उसे मिली थीं और उसे उन सब पर दया आई जिन्हें वे नहीं मिली थीं।
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अगस्ट स्ट्रिंगबर्ग (१८४९-१९१२)
अगस्ट स्ट्रिंगबर्ग स्वीडन का सर्वाधिक प्रसिद्ध लेखक है। उसने उपन्यास, कहानियाँ, कविताएँ और लेख लिखे पर वह अपने नाटकों के कारण चर्चित रहा है। वह प्रकृतिवादी है और नाटकों के क्षेत्र में प्रतीकवादी और प्रयोगवादी के रूप में जाना जाता है।
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