Wednesday 1 October 2014

द पियानो: स्त्री-भावनाओं की अभिव्यक्ति

‘द पियानिस्ट’ फ़िल्म में नायक फ़िल्म के प्रारंभ और अंत दोनों में पियानो बजा रहा है। भूमिगत होने के समय उसकी त्रासदी यह है कि उसके सामने पियानो रखा है मगर वह उसे बजा नहीं सकता है, बजाते ही उसकी अपनी जान के साथ साथ-उसके संरक्षकों की जान को भी खतरा है। नात्सी बर्बरता के बरबक्स कला की नाजुकता-उच्चता का विरोधाभास अपने चरम पर है इस फ़िल्म में। नायक की पतली, सुंदर, नाजुक और लम्बी अँगुलियाँ पियानो बजाने के लिए तरसती हैं। वह हवा में पियानो बजाता है, उसकी थिरकती अँगुलियाँ त्रासद स्थिति उत्पन्न करती हैं। दूसरी ओर ‘पियानो टीचर’ छात्रों को पियानो बजाना सिखाती है वह स्वयं एक कुशल वादक है। मगर यहाँ उसकी कुत्सित दमित भावनाएँ, उसका अहं, उसका फ़्रस्ट्रेशन, उसकी ऊर्जा पियानो बजाना सिखाने से अधिक अपने छात्रों को नष्ट करने में खर्च होती है। एक समय यूरोप पश्चिमी संस्कृति में पियानो घर के फ़र्नीचर का हिस्सा हुआ करता था। उसे बजाना सीखना संस्कृति का अंग था। जो बचपन में उसे बजाना नहीं सीखते थे उन्हें बाद में अफ़सोस हुआ करता था। यह कलात्माक अभिव्यक्ति का माध्यम था। पोलिस कम्पोजर फ़्रेडरिक चोपिन (१८१०-१८४९) पियानो के लिए संगीत करने के लिए प्रसिद्ध है। पियानो संगीत में सर्वाधिक चोपिन ही प्रसिद्ध है। उसकी तरह बहुत कम संगीतज्ञों ने सोलो पियानो के लिए संगीत रचा है। उसने सिम्फ़नी, ऑपेरा अथवा समूह संगीत नहीं बनाया, मात्र और मात्र पियानो संगीत रचा। वह गैरपरंपरावादी संगीतकार था उसने बहुत बार क्लासिकल नियमों को तोड़ा, उसके अनुशासन को भंग करके नई संरचनाएँ बनाई। उसका बनाया संगीत आज भी पियानो पर बजाया जाता है ‘द पियानिस्ट’ का नायक रेडियो स्टेशन पर चोपिन बजा रहा था जब नात्सी रेडियो स्टेशन के साथ-साथ शहर के यहूदी हिस्सों को बमबारी से नष्ट कर रहे होते हैं। पियानो टीचर शूबर्ट की दीवानी है। पियानो इंग्लिश और यूरोपियन फ़िल्मों का हिस्सा रहा है, कुछ समय तक भारतीय फ़िल्मों का भी। मगर पियानो को केंद्र में रख कर कुछ ही फ़िल्में बनी हैं। ऊपर ‘द पियानिस्ट’ और ‘पियानो टीचर’ की चर्चा हुई है। जेन कैम्पियान ने पियानो को मुख्य किरदार के रूप में प्रदर्शित करते हुए ‘द पियानो’ फ़िल्म बनाई। न्यूजीलैंड की इस निर्देशक ने १९वीं सदी के न्यूजीलैंड को साकार कर दिया है। मगर इस फ़िल्म के निहितार्थ गहन हैं। यह नारीवादी फ़िल्म उस युग के विषय में बहुत सारे मुद्दे उठाती है जो आज भी प्रासंगिक हैं। स्कॉटलैंड से चली मूक एडा मैग्राथ न्यूजीलैंड के वीरान-अनजाने तट पर अपनी नौ साल की बेटी फ़्लोरा और अपने पियानो के साथ उतरती है। आस-पास हैं नोकीले पहाड़, काला, लहराता, भयंकर गरजता-उफ़नता समुद्र, अनजानी वनस्पति, विचित्र-अजनबी माउरी आदिवासी। माँ-बेटी अपने पियानो के पास पेटीकोट का तंबू तान कर उसके भीतर बैठ जाती हैं। यही ओपनिंग सीन है इस फ़िल्म का। कोई आश्चर्य नहीं कि कैम्पियन को ओरीजनल स्क्रीन राइटिंग और निर्देशन दोनों के लिए ऑस्कर से नवाज गया जबकि एडा की भूमिका कर रही होली हंटर को सर्वोत्तम नायिका के लिए पुरस्कार प्राप्त हुआ। न्यूजीलैंड के वीरान तट पर बैठी यह स्त्री असल में इंतजार कर रही हैं अपने नए पति का। उसके पिता ने उसे बेच दिया है, उसकी शादी तय कर दी है, उसने अपने पति को नहीं देखा है। अपने भरे-पूरे समुदाय को छोड़ कर वह यहाँ आई है। पति आता है। इस कीचड़ भरे स्थान में कोई सवारी या मालवाहक गाड़ी नहीं है सारा सामान माउरी समुदाय के आदिवासियों द्वारा ढोया जाना है। पति को पियानो फ़ालतू लगता है क्योंकि उसके लिए यह एक बोझ से अधिक कुछ नहीं है। दूसरों के लिए वह एक कॉफ़िन, एक ताबूत से अधिक कुछ नहीं है जबकि एडा के प्राण उसमें बसते हैं। यह उसके पिता का उसकी माँ को विवाह की वर्षगाँठ पर दिया तोहफ़ा था। एडा जब कुछ दिनों की थी तब उसकी माँ गुजर गई और अपना पियानो वह अपनी बेटी के लिए दे गई थी। इस तरह एडा जो एक समय अपने पिता से बहुत प्रेम करती थी उसके द्वारा दिए गए अपनी माँ के इस उपहार को अपना ही प्रतिरूप और एक्सटेंशन मानती है। पति स्टेवार्ट हुक्म देता है कि पियानो को वहीं तट पर छोड़ जाए। उठा कर ले जाना मुश्किल है साथ ही घर में उसके लिए जगह नहीं होगी। नीली आँखों वाला पति अपनी नई पत्नी का ऐसे स्वागत करता है। पियानो परित्यक्त अवस्था में वहीं पड़ा रहता है और सब लोग चल देते हैं। स्टेवार्ट की भूमिका में सैम नेल खुद प्रवासी किसान है और अपनी छवि के प्रति बहुत सतर्क है। आदिवासी उसे बेवकूफ़ सोचते हैम और उसकी हँसी उड़ाते हैं। मगर मूक एडा क्या करे, उसकी जान पियानो में बसती है वह उसकी अभिव्यक्ति का एक साधन है। पियानो की ऐसी उपेक्षा तत्काल उसे पति से विमुख कर देती है। ठीक उसके उलट है स्टेवार्ट का पड़ौसी उम्रदराज बाइन्स अनपढ़ है, लेकिन धैर्यवान है, उसने माउरी संस्कृति को अपनाने, उनके साथ खुद को जोड़ने के लिए चेहरे पर गोदना गुदवा लिया है। देखने में वह अपरिष्कृत है मगर उसका दिल नरम है। एडा और फ़्लोरा की अपेक्षा वह बहुत साफ़-सुथरा नहीं है, फ़्लोरा उसे हाथ साफ़ करने के लिए कहती है। उसके गंदे कुत्ते को भी नहलाती है। वह पियानो उठाता है, इसके एवज में स्टेवार्ट को जमीन का एक टुकड़ा धरा देता है। इस तरह एडा का पियानो बाइन्स के यहाँ पहुँच जाता है। अभिनेता हर्वी कीटल का बाइन्स के रूप में चुनाव प्रशंसनीय है। पियानो एडा और बाइन्स के बीच सेतु बनता है। यह न केवल पति-पत्नी के बीच अजनबीपन उत्पन्न करता है वरन आगे चल कर माँ-बेटी में भी दुराव पैदा करता है। यह सारे चरित्रों को किसी-न-किसी रूप में जोड़ने का माध्यम है। ‘द पियानो’ एक जटिल फ़िल्म है जिसमें माँ-बेटी, पति-पत्नी के रिश्तों, स्त्री की इच्छा-आकांक्षाओं, उसकी यौनावश्कताओं, उनकी अभिव्यक्ति, भाषा, संस्कृति, सभ्यता, कला, जीवन की तमाम प्रमुख बातों-संबंधों को लिया गया है। एडा ने स्वत: छ: वर्ष की उम्र में बोलना बंद कर दिया है, क्यों? उसे खुद भी ज्ञात नहीं है। फ़्लोरा के अनुसार बात क्यों की जाए जब अधिकाँश समय बकवास होती है। एडा भले ही मूक है मगर वह बहुत जिद्दी है, उसकी अपनी सोच है, वह वही करती है जो उसके मन में आता है। उसे सामाजिक दृष्टि से सामान्य नहीं कहा जा सकता है। मगर क्या उसके आस-पास के लोग सामान्य हैं। एडा मूक है, यह उसकी किसी खामी के कारण नहीं है, इसका कोई मैडिकल कारण नहीं है। उसकी अपनी आवाज नहीं है, हाँ, उसकी अपनी आंतरिक आवाज है। वह खुद को कई तरह से संप्रेषित करती है। एक बार वह फ़्लोरा को बताती है कि वह उसके पिता के दिमाग में बिना बोले चादर की तरह अपने विचार रख देती थी। उसके नया पति को भी लगता है कि वह उससे कुछ कहती है। इसी बात को समझ कर वह एडा और फ़्लोरा को बाइन्स के साथ जाने देता है। पियानो एडा के व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा है वह खुद को पियानो द्वारा अभिव्यक्त करती है। उसके गले में सदा एक पैड और कलम लटका है, जब-तब वह लिख कर कभी फ़्लोरा द्वार तो कभी खुद अपनी बात दूसरों तक पहुँचाती है। वह जॉर्ज और बाइन्स को लिख कर संप्रेषित करती है। हर बार वह पियानो के विषय में लिखती है। बाइन्स लिख-पढ़ नहीं सकता है, फ़िर भी वह पियानो की पर उकेर पर अपना प्रेम संदेश उसे भेजती है। दूसरी ओर जॉर्ज नोट पढ़ कर भी उसकी अवहेलना करता है, उसे उसके पियानो से दूर कर देता है। हर बार उसका लिखा नोट व्यर्थ रहता है। तीसरा तरीका जो वह अपनाती है, वह है, सांकेतिक भाषा। यह सांकेतिक भाषा मूक-बधिर की वैश्विक सांकेतिक भाषा न हो कर उसके द्वारा खुद अन्वेषित भाषा है जिसे फ़्लोरा बखूबी समझती है और दूसरों के साथ-साथ दर्शकों को भी समझाती है। इस सांकेतिक भाषा में फ़्लोरा उसकी सहायक है। फ़्लोरा दूसरों को भी यह भाषा सिखाती है। सबसे ज्यादा संवाद फ़्लोरा के ही हैं। इसके अलावा एडा की आँखें, उसकी मुख-मुद्रा, उसका शरीर भी अपनी बात भली-भाँति अभिव्यक्त करता है। वैसे भी फ़िल्म चाक्षुष माध्यम है और निर्देशक जेन अपने माध्यम पर मजबूत पकड़ रखती है। असल में समुद्र तट पर एडा के उतरने के पहले उसकी व्यॉजओवर द्वारा स्कॉटलैंड में उसके बचपन और वर्तमान स्थिति की जानकारी दर्शक पाता है। फ़िल्म प्रारंभ में ही पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री की दशा-दिशा को स्पष्ट कर देती है। उसके पिता के लिए वह मात्र एक वस्तु है जिसे उसने एक अनजान व्यक्ति को अनजान प्रदेश में बेच दिया है। वह प्रतिकार नहीं कर पाती है। उसकी मूकता बहुअर्थी है। स्त्री को चुप करा देना, उसके अस्तित्व को नकार देना, उसे सम्पत्ति माना जाना, पण्य वस्तु में परिवर्तित कर देना कोई नई बात नहीं है। यह पहले भी हुआ है, आज भी होता है। स्त्री को सामान्यत: अपनी इच्छाओं-आकांक्षाओं, खासकर अपनी यौनाकांक्षाओं को प्रकट करने की आजादी समाज नहीं देता है। उसका कोई अधिकार नहीं होता है, उसे पुरुष द्वारा तय किए नियमों को मानना होता है। एडा मूक है उसकी इस मूकता से उसके होने वाले पति को कोई आपत्ति नहीं है , न ही उसकी बेटी से। फ़िल्म में पता नहीं चलता है या यूँ कहें जानबूझ कर स्पष्ट नहीं किया गया है कि एडा की बेटी उसके विवाहित पति से है अथवा नाजायज औलाद है। फ़्लोरा और एडा के इस विषय में अलग-अलग वर्सन हैं। जेन कैम्पिओन की प्रत्येक फ़िल्म में उनके निजी जीवन के कुछ टुकड़े अवश्य आते हैं चाहे यह ‘पील’, ‘टू फ़्रैंड्स’, ‘इन द कट’, ‘एन एंजल एट माई टेबल’, ‘स्वीटी’ हो अथवा ‘द पियानो’ हो। ‘द पियानो’ में एडा निर्देशक की अपनी माँ एडिथ की कई विशेषताओं से लेस है। यहाँ भी अप्रसन्न परिवार है। एडा अपने पति को अपने पास नहीं आने देती है। एक बार जब जॉर्ज कई दिन के लिए बाहर गया हुआ था माँ-बेटी बाइन्स से अनुरोध करती हैं कि वो उन्हें समुद्र तट पर उनके पियानो के पास ले जाए। इसरार करने पर वो उन्हें वहाँ ले जाता है। तट पर एडा पियानो बजाती है, फ़्लोरा भी बालू, सीप-शंख से खेलते हुए बड़ी कलात्मक संरचना बनाती है। जब वे पहली बार तट पर उतरी थीं तब भी शंख-सीप की सुंदर संरचना बनाती हैं और उसी के भीतर सोती हैं। इस समय जब वह पियानो बजा रही है बाइन्स चुपचाप सुनता है। एडा का पियानो से लगाव देखते हुए बाइन्स जॉर्ज से जमीन के एक टुकड़े के एवज में पियानो खरीद कर अपने घर में रख लेता है। पति के कहने पर एडा बाइन्स को पियानो सिखाने को राजी हो जाती है। बाइन्स उससे सैक्सुअल फ़ेवर के बदले एक-एक पियानो की के विनिमय का प्रस्ताव रखता है जिसे वह मान लेती है। इसी विनिमय के सामानांतर जॉर्ज स्टेवार्ट कंबल और बंदूक के एवज में माउरी से जमीन खरीदता जाता है। पियानो लेसन्स के समय फ़्लोरा बाहर खेलने के लिए मजबूर है और उसे यह अच्छा नहीं लगता है। वह अपनी माँ के बहुत करीब थी, उसे उससे दूर होना खलता है। अरुंधति रॉय भी अपने एकमात्र उपन्यास ‘गॉड ऑफ़ स्मॉल थिंग्स’ में दिखाती हैं कि युवा माँ अपने और अपने प्रेमी के बीच बच्चों को नहीं आने देती है। यहाँ भी एडा फ़्लोरा को बाहर खेलने की हिदायत देती है। माँ का यह व्यवहार फ़्लोरा को एडा से विमुख कर देता है और एक दिन वह दरार से दोनों को एक साथ देखती है। उन्हीं क्रियाओं को सांकेतिक रूप से बच्चों के साथ दोहराती है। शुरुआत में एडा बाइन्स की इच्छा पूर्ति के एवज में अपना पियानो हासिल करती है मगर एक समय ऐसा आता है जब अनपढ़ बाइन्स को लगता है कि औरत को वेश्या बनाना उचित नहीं है अत: वह पियानो जॉर्ज के घर भेज देता है। इस बीच एडा की भावनाएँ जाग चुकी थीं। अपने से काफ़ी बड़ी उम्र के बाइन्स के प्रति वह आकर्षित हो चुकी थी। एकतरफ़ा प्यार आपसी प्रेम में परिवर्तित हो चुका है। वह निर्द्वंद्व भाव से बाइन्स से मिलती है और खुद को पूरी तरह से उसे समर्पित कर देती है। फ़्लोरा ने कहा था कि वह कभी स्टेवार्ट को पापा नहीं कहेगी, उसका मुँह नहीं देखेगी, वही फ़्लोरा माँ से बदला लेने के लिए उसे एडा के गुप्त रिश्ते से अवगत कराती है। असल में माँ से उसका अजनबीपन तभी प्रारंभ हो गया था जब उसे एडा और स्टेवार्ट की शादी और उसके बाद खींचे जाने वाले फ़ोटो में शामिल नहीं किया गया था। एलिसडेयर स्टेवार्ट खुद अपनी आँखों से सब देखता है और एडा को घर में लकड़ी के तख्तों से बंद कर देता है। इसी बीच बाइन्स ने यह स्थान छोड़ने का निश्चय कर लिया है। एडा अपने प्रिय पियानो की एक की निकाल कर उस पर अपना प्रेम निवेदन "Dear George you have my heart Ada McGrath" उकेर कर फ़्लोरा के हाथ से बाइन्स के पास भेजती है। ईर्ष्या, क्रोध और विवशता से भरी फ़्लोरा यह उपहार बाइन्स को न दे कर ले जाकर स्टेवार्ट को देती है। दमित इच्छाओं और क्रोध में पगलाया पति एडा की अँगुली कुल्हाड़ी से काट कर उसी नैपकीन में लपेट कर फ़्लोरा के हाथ से बाइन्स के पास भेजता है। हदसी हुई फ़्लोरा को बाइन्स शांत कर अपने पास सुला लेता है। एक ओर स्टेवार्ट का अधैर्य, क्रोध, ईर्ष्या दूसरी ओर बाइन्स का शांत स्वभाव, धैर्य, समझ फ़िल्म में अच्छा कंट्रास्ट उत्पन्न करते हैं। स्वयं जेन कैम्पिओन के लिए चाह, उत्सुकता और कामवासना का वैसा ही अध्ययन है, जैसा एक अध्याता करता है। उन्होंने इन तीनों तत्वों का अध्ययन कर इन्हें प्रेम में परिवर्तित होते दिखाया है। फ़िल्म का प्रारंभ और अंत दोनों थॉमस हुड कविता “साइलेंस” की टिप्पणी से होता है। पंक्तियाँ हैं: "There is a silence where hath been no sound. There is a silence where no sound may be in the cold grave under the deep deep sea." ‘द पियानो’ फ़िल्म देखने के बाद जुगाली के लिए काफ़ी कुछ दे जाती है। आप चुभला-चुभला कर उसका रस ले सकते हैं। यह दमन-शोषण, यौनेच्छापूर्ति, कोमलता-कठोरता, प्रेम-ईर्ष्या-क्रोध, विभिन्न संबंधों की काल्पनिक और यथार्थ दोनों तरह की मनोवैज्ञानिक आख्यायिका है। हर चरित्र अपने आप में सीमाओं के अतिक्रमण की एक कहानी है। न्यूजीलैंड के माउरी समुदाय की उपस्थिति कहानी को अलग मोड़ देती है। फ़्लोरा के रूप में एना पॉकिन का अभिनय कदाचित ही देखने को मिलता है। नौ से तेरह वर्ष की ५००० बच्चियों में से एना पॉकिन को चुना गया था। खुशी और नाखुशी दोनों की इतनी स्वाभाविक अभिव्यक्ति एक बाल कलाकार में इतनी प्रौढ़ता के साथ विरले ही मिलेगी। अगर उसने पुरस्कार बटोरे तो कोई आश्चर्य नहीं। पति के रूप में सैम नेइल का जानदार अभिनय खास कर क्रोध के समय देखते बनता है। बाइन्स के रूप में हारवी केइटेल सर्वोत्तम चुनाव हैं। जेन कैम्पिओन के अनुसार उन्हें ब्रोन्टी बहनों का लेखन आकर्षित करता है खासकर ‘बदरिंग हाइट’ उनका प्रिय उपन्यास है। ‘द पियानो’ में इस उपन्यास की झलक मिलती है। इसमें वही पैशन और विश्वास दीखता है। इसकी सघनता दर्शक को प्रभावित करती है। फ़िल्म को इन्होंने खुद लिखा, निर्देशित किया है, साथ-ही-साथ इसकी प्रोड्यूसर भी वे स्वयं हैं। प्रारंभ में इसका नाम उन्होंने ‘द पियानो लेसन’ रखा था मगर बाद में कॉपीराइट्स के कारण केवल ‘द पियानो’ करना पड़ा। यूरोप में आज भी यह फ़िल्म ‘द पियानो लेसन’ नाम से ही जानी जाती है। फ़िल्म को संगीत दिया है माइकेल निमैन ने। म्युनिख फ़िलहार्मोनिक ऑकेस्ट्रा के सदस्यों ने संगीत बजाया है। संगीत इस फ़िल्म की जान है। निमैन ने जब स्क्रिप्ट पढ़ी तो उन्होंने इसका संगीत बनाने का निश्चय कर लिया। इसके पहले वे अलग तरह का संगीत बना रहे थे। उनकी सिग्नेचर ट्यून बहुत अलग थी। मगर जेन के कहने पर उन्होंने भिन्न प्रकार का संगीत बनाया। हॉली हंटर ने खुद पियानो बजाया है। हॉली ने कई बार निमैन की संरचना को नकार दिया। जब निर्देशक, नायिका और संगीतकार तीनों संतुष्ट होते तभी उस संगीत-टुकड़े को फ़िल्म के लिए स्वीकार किया जाता। एक बार जेन ने निमैन को होटल के कमरे में बंद कर दिया और कहा वे तब ही दरवाजा खोलेंगी जब निमैन संगीत बना लेंगे। जेन के इस व्यवहार को वे बड़े प्रेम से याद करते हैं। निमैन के लिए इस फ़िल्म के लिए सही स्वर पाना आसान न था। इसके लिए उन्होंने काफ़ी परिश्रम किया। उनकी संगीत शिक्षा-दीक्षा बहुत अनुशासन के साथ हुई थी लेकिन इस फ़िल्म का संगीत बनाने के लिए उस अनुशासन को भंग करना जरूरी था। यहाँ स्पॉन्टनिटी की आवश्यकता थी। उन्होंने १९वी सदी की स्कॉटलैंड की स्त्री के संगीत को समझने के लिए लंदन यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी की खाक छानी, स्कॉटलैंड के लोकगीतों का अध्ययन किया तब जा कर वे पियानो का संगीत बना सके। इसने उन्हें एक नई ऊँचाई और प्रसिद्धि दी। वे इसे अपने संगीत जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव मानते हैं और अपने संगीत को प्री-पियानो और पोस्ट-पियानो दो स्पष्ट भागों में विभाजित करते हैं। फ़िल्म निर्देशक और कैमरे का माध्यम है। न्यूजीलैंड के औपनिवेशिक जीवन को पकड़ने में कैमरा पूरी तरह सक्षम है। सिनेमेटोग्राफ़ी के विषय में यदि कुछ नहीं कहा जाए तो यह फ़िल्म के प्रति अन्याय होगा। जेन चाहती थी कि फ़िल्मांकन ऐसा हो जो लगे कि पानी के भीतर से हुआ है। उनकी इस इच्छा को पूरा करने में स्टुअर्ट ड्राईबर्ग खूब सफ़ल हुए हैं। ब्लू ऑटोक्रोम का प्रयोग फ़िल्म को एक अलग लुक देता है। इसके लिए स्टुअर्ट ड्राईबर्ग को ऑस्ट्रेलियन फ़िल्म इंस्टिट्यूट, शिकागो फ़िल्म क्रिटिक, लॉसएंजेल्स फ़िल्म क्रिटिक अवॉर्ड प्राप्त हुए। फ़िल्म के अंत को ले कर बाद में जेन संतुष्ट नहीं हैं। उन्हें लगता है कि एडा को जल समाधि ले लेनी चाहिए थी। दर्शकों की कल्पना के लिए यह अंत बेहतर होता, यही अधिक सटीक भी होता। जबकि वास्तविक फ़िल्म में एडा अपने पैर को पियानो की रस्सी में बाँध कर उसके साथ-साथ समुद्र में चली जाती है। वह पानी के भीतर खुद को पियानो की रस्सी से निकाल भी लेती है। अब जेन को लगता है कि फ़िल्म यहीं समाप्त होनी चाहिए थी। मगर फ़िल्म में बाइन्स के नाविक उसे समुद्र से निकाल लाते हैं और बाइन्स उसके लिए स्टील की अँगुली बनवा देता है ताकि वह पियानो बजा सके। वह पियानो बजाती है साथ ही फ़िर से बोलना सीख रही है। बाइन्स और उसका प्रेम भी अंत में प्रदर्शित है। फ़्लोरा कहीं नजर नहीं आती है। न्यूजीलैंड के अंधेरे, कीचड़ भरे परिवेश की बनिस्बत यहाँ का वातावरण बहुत खुला और चमकीला है। जेन एक साक्षात्कार में कहती हैं कि यदि अब वे फ़िल्म बनाती तो अंत अलग होता। अगर एडा अपने पियानो के साथ समुद्र में समा जाती तो यह एक बेहतर अंत होता। फ़िल्म का लोकेशन फ़िल्म की थीम, उसकी मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि के विषय में बहुत कुछ कहता है। पर्यावरण चरित्रों के आंतरिक वातावरण की प्रतिछाया होता है। वह उनकी आंतरिक अवस्था को प्रोजेक्ट करता है। फ़िल्म का अधिकाँश भाग श्याम समुद्र, बारिश, घना जंगल, कीचड़ का वातावरण है। इस कीचड़ में यूरोपीयन पोशाक में एडा और फ़्लोरा विरोधाभास उत्पन्न करती हैं, उनके लम्बे तंबूनुमा स्कर्ट, उसके अंदर पहने श्वेत लेस से सजे नाजुक कपड़े वहाँ के वातावरण से मेल नहीं खाते हैं। माउरी लोगों की संस्कृति अलग दृश्य प्रस्तुत करती है। एक ओर यूरोप की संस्कृति है दूसरी ओर माउरी हैं। उन्हें एडा का पहनावा, व्यवहार सब अजीब लगता है। दोनों संस्कृतियों के बीच पुल बनाता बाइन्स है यूरोप का होने हुए भी माउरी संस्कृति को अपनाने के प्रयास में है। इसीलिए उसने अपने चेहरे पर गोदना गुदवाया हुआ है। जिसकी पत्नी यदि वह है तो कहीं लंदन में है। एडा का यदि किसी से यहाँ साम्य है तो वह केवल फ़्लोरा से है। निर्देशक ने एडा और फ़्लोरा को शुरु में आइडेंटिकल दिखाया है। दोनों के कपड़े, बोनट वाला हैट, चेहरे के हाव-भाव, गर्दन हिलाना सब एक जैसे हैं। दोनों एक-दूसरे की भावनाओं को भली-भाँति समझती हैं, एक-दूसरी की संगत में प्रसन्न रहती हैं। बाद में एडा की कामभावना जाग्रत होने पर दोनों का व्यवहार बदल जाता है। पियानो तीनों पात्रों को अलग-अलग पाठ पढ़ाता है। पति को पता चलता है कि प्रेम शक्ति और सत्ता से नहीं पाया जा सकता है। बाइन्स सीखता है कि कामभावना के वशीभूत हो कर किसी स्त्री को वेश्या बनाना सही नहीं है, उसे अपने कोलम पक्ष का भान होता है और एडा को पता चलता है कि पियानो से अधिक उसे बाइन्स से प्रेम है। वह उसकी भावनाओं का उचित प्रतिदान दे सकता है। १९९३ में बनी यह फ़िल्म दर्श्कों और समीक्षकों द्वारा हाथोंहाथ ली गई थी। असल में जेन अपनी पहली फ़ीचर फ़िल्म ‘स्वीटी’ से चर्चित रही हैं। वैसे इसके पूर्व वे कई शॉर्ट फ़िल्में बना चुकी थीं। जो भी सिनेमा, माता-पिता, पिता-पुत्र, माँ-बेटी के आपसी संबंधों और सीमाओं के पार जाने की गुत्थियों में रूचि रखता है उसे जेन कैम्पिओन की फ़िल्में भाएँगी। वे पॉम ड’ओर सम्मान पाने वाली पहली महिला निर्देशक हैं। जब कॉन फ़िल्म समारोह की ५०वीं जयंति के अवसर पर पॉम ड’ओर के विजेता मंच पर आए तो मंच पर जेन एकमात्र महिला थीं। उनका मानना है कि फ़िल्म बनाना कठिन और संवेदनशीलता का कार्य है चाहे इसे पुरुष बनाए अथवा स्त्री। ‘द पियानो’ को आठ नामांकन मिले जिसमें से उसे तीन ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त हुए। होली हंटर को सर्वोत्तम अभिनेत्री, ११ साल की एना पाकुइन को सर्वोत्तम सहायक अभिनेत्री और खुद जेन को सर्वोत्तम मौलिक स्क्रिप्ट हेतु। पॉम ड’ओर की सफ़लता का उत्सव मनाने का अवसर जेन को नहीं मिला क्योंकि उसी समय उनके १२ दिन के बच्चे जेस्फ़र की मृत्यु हुई थी। बाद में उनकी बेटी एलिस पैदा हुई आज एलिस फ़िल्मों में काम कर रही है। खुद वे अपने दु:ख से अपने काम के द्वारा उबरीं। जेन को लगा उनका नया जन्म हुआ है जब उन्होंने जॉन कीट्स के ऊपर ‘ब्राइट स्टार’ बनाई। बीस साल से पियानो चर्चित फ़िल्म रही है अब इसे ब्लू-रे प्रिंट में फ़िर से रिलीज किया गया है। मैंने ऊपर लिखा है कि जेन की फ़िल्मों में उनके जीवन के अंश, खासकर उनके बचपन और पारीवारिक रिश्ते प्रदर्शित होते हैं। १९५४ में न्यूजीलैंड में जन्मी और आजकल ऑस्ट्रिल्या में रह रही एलीजबेथ कैम्पिओन जेन के माता-पिता थियेटर से गहराई से जुड़े हुए थे। ‘द पियानो’ का क्रिसमस पर दिखाया गया नाटक ‘ब्लूबीयर्ड’ उसी की आवृति है। पिता रिचर्ड कैम्पिओन निर्देशन करते थे और माँ एडिथ अभिनय। जिस तरह से ब्लूबीयर्ड अपनी पत्नी को कुल्हाड़ी से मार डालता है कुछ उसी तरह एडा का पति उसकी अँगुली कुल्हाड़ी से काट डालता है। जेन ने खुद एक स्त्री को अपना हाथ काटते हुए देखा था। इस स्त्री का पति बेवफ़ा था और इससे वह स्त्री अवसाद में थी, और उसने यह कदम उठाया। पति को तो रोक नहीं पाई लेकिन आत्महानि से उसे कोई रोक न सका। खुद जेन की माँ अवसादग्रस्त स्त्री थी और उसे मानसिक रोगियों के अस्पताल में बिजली के झटके दिए जाते थे। जेन ने अपने पिता की बेवफ़ाई और माँ पर उसका असर देखा है। एना और जेन बचपन में इन परिस्थितियों से गुजरी हैं। इसीलिए जेन की फ़िल्में बचपन की इन अनुभूतियों को पर्दे पर उतारती हैं। एक तरह से यह उनका कैथारसिस है, बचपन में मिले सदमों से उबरने की कोशिश। समाज स्त्री को कई तरह से अंगविहीन (बधिया) करता है। चुनाव की स्वतंत्रता न होना, अपनी बात न कह पाने देना, किसी से भी उसका विवाह कर देना, उसकी पसंदगी-नापसंदगी का महत्व न होना, उसके अस्तित्व को नकारना आदि स्त्री का बधियाकरण नहीं तो क्या हैं? ‘द पियानो’ में एडा के साथ ऐसा कई तरह से होता है। वह मूक है जिसका कारण स्पष्ट नहीं है, पिता ने उसे बेच दिया है, एक अनजान आदमी से उसका विवाह होना है, उसे एक नई जगह, अजनबी वातावरण में रहना है। उसकी प्रिय वस्तु पियानो दूसरों के लिए बेकार की वस्तु है, पियानो से उसका पति उसे दूर कर देता है, बिना उसकी अनुमति लिए हुए उसका पियानो जमीन के एवज में बाइन्स को बेच देता है। अंतत: उसका शारीरिक अंग-भंग भी करता है, उसकी अँगुली काट डालता है ताकि वह कभी पियानो न बजा सके। इस सबके बावजूद वह अपना स्त्रीत्व का दावा नहीं छोड़ती है। वह पितृसत्ता के विरुद्ध जाकर अपनी इच्छाओं की पूर्ति करती है। अपने पियानो को पाने के लिए बाइन्स से स्वतंत्र रूप से करार करती है, बाइन्स की ओर से कोई जोर-जबरदस्ती नहीं की जाती है। वह उसे स्पर्श करने देती है तो अपनी मर्जी से। वह अपने शरीर की खुद मुख्तार है अत: उसका मनचाहा उपयोग करती है, जरूरत पड़ने पर उसे आर्थिक साधन के रूप में भी प्रयोग करती है। एडा अपने अस्तित्व को कायम करने के लिए अपनी ममता-मातृत्व को भी दाँव पर लगा देती है हालांकि इसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ता है। अपना पियानो वापस पा लेती है। बाद में बाइन्स से प्रेम होने पर खुद को उसे समर्पित भी करती है। पति की प्रताड़ना के बावजूद प्रेमी को संदेश भेजती है, वह भी अपने प्रिय पियानो को नष्ट करके यह दीगर है कि संदेश प्रेमी के पास न पहुँच कर पति के पास पहुँचता है। जब उसे लगता है कि अब उसे पियानो की आवश्यकता नहीं है वह पियानो समुद्र में गिराने की जिद करती है और गिरवा कर मानती है। इस दृष्टि से वह एक मजबूत स्त्री है जिसे अपने स्त्रीत्व का ज्ञान है। फ़िल्म माँ-बेटी के रिश्तों की नजदीकी और जटिलता दोनों को सफ़लतापूर्वक दिखाती है। शुरुआत में अनजान प्रदेश में माँ-बेटी एक-दूसरे की संगत में न केवल महफ़ूज हैं वरन खूब खुश भी हैं। वे एक-दूसरे को बहुत अच्छी तरह से समझती हैं। स्त्रियों की नजदीकी का एक साधन है एक दूसरे के बाल संवारना। दोनों यह काम खूब प्रेम से करती हैं। फ़्लोरा शुरु में अपनी ममता बाइन्स के कुत्ते पर लुटाती है। कुत्ता और फ़्लोरा दोनों बाहर छोड़ दिए गए हैं। जब बाइन्स के लिए पियानो बजाते समय एडा फ़्लोरा बाहर खेलने का कठोर निर्देश देती है तब से फ़्लोरा की ओर से रिश्तों में दरार आ जाती है। यह खाई चौड़ी होती जाती है जिसका अंत बहुत भयंकर होता है। बच्ची इस परिणाम को देख कर दहल जाती है। फ़िल्म के अंत में नाव में फ़िर वे संग हैं और फ़्लोरा पहले की तरह एडा की आवाज बन कर दूसरों को उसकी बात समझा रही है। दोनों एक-दूसरे का एक्टेंशन लगती हैं। कभी फ़्लोरा एडा की पिछली जिंदगी के बारे में दूसरों को बताती है, कभी एडा से अपनी पिछले जीवन की कहानी बार-बार सुनाने का आग्रह करती है। बताई गई दोनों की पिछली जिंदगी कितनी सच है और कितनी कल्पना कह पाना कठिन है। कभी फ़्लोरा माँ को डाँटती है, कभी लाड़ करती है। तीसरे की उपस्थिति में वे ‘टच मी नॉट’ की तरह छूईमूई बन जाती हैं, सिकुड़-सिमट जाती हैं। फ़्लोरा की चाल-ढ़ाल बिल्कुल एडा की तरह है। फ़्लोरा भी पियानो बजाना जानती है, पियानो ट्यून है या नहीं पहचानती है। एडा के पहले पति और फ़्लोरा के पिता के बारे में कुछ बातें पता चलती हैं। वह संगीत रसिक था, विख्यात था, संगीत सिखाता था। जर्मन था, पता नहीं उसने एडा से शादी की थी या नहीं, अब वह उनके साथ क्यों नहीं है, ये बातें पूरी तौर पर जानबूझ कर स्पष्ट नहीं की गई हैं। एडा और फ़्लोरा मिल कर एक मिथक गढ़ती हैं इसमें परीकथा जैसा सौंदर्य है। जेन कैम्पिओन ने एडा को खुद गढ़ा है, एक स्त्री ने स्त्री को गढ़ा है। इसीलिए उसका प्रभाव इतन सघन है। जेन के अनुसार एडा उनकी हिरोइन है। फ़िल्म में पियानो की संगीत लहरी बहुत महत्वपूर्ण है। फ़िल्म के पहले हिस्से में जब भी एडा अकेली है या एडा और फ़्लोरा संग में हैं और दूसरे अनुपस्थित है पियानो की ध्वनि सुनाई देती है। शादी के बाद जब बाहर बारिश हो रही है एडा कल्पना में तट पर पड़ा अपना पियानो देखती है और पियानो की ध्वनि सुनाई देती है। बाइन्स एडा को तट पर पियानो बजाते देखता है तो वो एडा लीन हो कर पियानो बजाता हुआ पाता है। बाद में अपने घर में जब वह एडा को पियानो बजाते हुए देखता है वह उसकी ओर आकर्षित होता है। उसके मन में एडा के प्रति प्रशंसा का भाव है। फ़िल्म में पियानो ध्वनि-संगीत, स्पर्श और गंध का प्रतीक है। बाइन्स एडा को सुनता है, उसके वस्त्र सूँघता है और स्पर्श करता है, अंतत: वे एक दूसरे को स्पर्श करते हैं। कई वर्ष पहले एक विज्ञापन आया करता था, “स्त्रियाँ अपनी भावनाएँ कई तरह से प्रकट करती हैं...उनमें से एक है।” फ़िल्म ‘द पियानो’ स्त्री की कई भावनाओं को सफ़लतापूर्वक प्रकट करता है। इसके लिए फ़िल्म को कई बार देखना जरूरी है। क्लासिक्स की यही विशेषता है, उससे बार-बार गुजरना पड़ता है, हर बार वह अपना एक नया अर्थ खोलता है। 000

No comments:

Post a Comment